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अफगानी छात्राओं की शिक्षा पर पाबंदी से दुनिया चिंतित, यूएन-यूएसए, कतर और भारत का विरोध

वाशिंगटन, 21 दिसंबर। अफगानिस्तान में छात्राओं की शिक्षा पर प्रतिबंध लगाने यानी शिक्षाबंदी किये जाने से दुनिया चिंतित है। संयुक्त राष्ट्र संघ (यूएन), संयुक्त राज्य अमेरिका (यूएसए), कतर और भारत ने खुलकर इस तालिबानी फैसले का विरोध किया है।
अफगानिस्तान की सत्ता संभाल रहे तालिबान ने अफगानिस्तान में छात्राओं के विश्वविद्यालय स्तर की शिक्षा प्राप्त करने पर रोक लगा दी है। अमेरिका ने तालिबान के इस फैसले को अक्षम्य करार देकर इसकी निंदा की है। अमेरिकी राष्ट्रपति आवास व्हाइट हाउस के प्रवक्ता एड्रिएन वाटसन ने कहा कि अफगानिस्तान में महिलाओं और लड़कियों पर अतिरिक्त प्रतिबंध लगाने और उन्हें अपने मानवाधिकारों और मौलिक स्वतंत्रता का प्रयोग करने से रोकने के लिए तालिबान नेतृत्व का यह सबसे निंदनीय कृत्य है। अफगानिस्तान की आधी आबादी को पीछे रखने के इस अस्वीकार्य रुख के परिणामस्वरूप, तालिबान अंतरराष्ट्रीय समुदाय से और अलग हो जाएगा और अपनी इच्छा की वैधता से वंचित हो जाएगा। वाटसन ने अपने एक बयान में अफगानी महिलाओं व छात्राओं का समर्थन करने की बात कही है।
संयुक्त राष्ट्र संघ के महासचिव एंटोनियो गुटेरेस ने भी तालिबान के इस कदम पर चिंता जताई है। उन्होंने कहा कि तालिबान ने विश्वविद्यालयों में महिलाओं और लड़कियों की पहुंच को निलंबित कर दिया है। शिक्षा से इनकार न केवल महिलाओं और लड़कियों के समान अधिकारों का उल्लंघन है, बल्कि इस फैसले का देश के भविष्य पर विनाशकारी प्रभाव पड़ेगा। संयुक्त राष्ट्र सुरक्षा परिषद में भारतीय प्रतिनिधि संजय वर्मा ने कहा कि भारत इस स्थिति को लेकर चिंतित है। अफगानिस्तान में महिलाओं की शिक्षा पर पाबंदी को मानवाधिकारों का हनन करार देते हुए उन्होंने कहा कि भारत हर स्थिति की बारीकी से निगरानी कर रहा है। उन्होंने अफगानिस्तान में सुरक्षा सहित देश से संबंधित विभिन्न मुद्दों पर अंतरराष्ट्रीय समुदाय के साथ सक्रिय रूप से जुड़े होने की बात भी कही है। कतर सरकार ने भी तालिबान के इस फैसले पर निराशा जाहिर की है। कतर के विदेश मंत्रालय की ओर से जारी बयान में कहा गया है कि इस फैसले से अफगानिस्तान के मानवाधिकारों, विकास और अर्थव्यवस्था पर प्रतिकूल प्रभाव पड़ेगा।