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पूर्वोत्तर समेत पूरे भारत में गूंज रही वैदिक सनातन संस्कृति : शंकराचार्य अधोक्षजानंद

29वें पीठारोहण पर जगद्गुरु के माघ मेला शिविर में हुये कई आयोजन
भारी संख्या में संत-महात्माओं व श्रद्धालुओं ने शंकराचार्य का किया स्वागत व अभिवादन

प्रयागराज। गोवर्धन पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य स्वामी श्री अधोक्षजानंद देव तीर्थ जी महाराज ने आज यहां कहा कि देश के पूर्वोत्तर क्षेत्र समेत समूचे भारत में इस समय वैदिक सनातन संस्कृति की गूंज है। हालांकि देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में धार्मिक अनुष्ठानों को और बढ़ावा देने की उन्होंने वकालत की है।

जगद्गुरु शंकराचार्य के पद पर अभिषेक होने के 29वें वर्ष के अवसर पर शंकराचार्य स्वामी श्री अधोक्षजानंद देव तीर्थ जी महाराज के माघ मेला स्थित शिविर में दो दिन का पीठारोहण समारोह हुआ। इस दौरान यज्ञादि विविध अनुष्ठान हुए। संतों को कंबल वितरित हुआ और वृहत् भंडारे का भी आयोजन था। कार्यक्रम को संबोधित करते हुए जगद्गुरु अधोक्षजानंद देव तीर्थ ने कहा कि आद्य शंकराचार्य भगवान के पथ का अनुसरण करते हुए गोवर्धन पीठ द्वारा देश के पूर्वोत्तर राज्यों समेत पूरे भारत में सनातन धर्म का व्यापक प्रचार प्रसार किया जा रहा है।

जगद्गुरु देवतीर्थ ने बताया कि लगभग 2500 वर्ष पहले आद्य शंकराचार्य भगवान ने गोवर्धन पीठ समेत चार मठों की स्थापना की थी। गोवर्धन मठ का भोगवारि सम्प्रदाय है। भगवान जगन्नाथ यहां के देवता और देवी विमला हैं। यहां का वेद ऋग्वेद और महावाक्य प्रज्ञानं ब्रह्म है। इस मठ के अधीन अंग, बंग, कलिंग, मगध, उत्कल और बर्बर क्षेत्र आते हैं। स्वामी श्री पद्मपादाचार्य मठ के प्रथम आचार्य थे। गोवर्धन मठ के 143वें शंकराचार्य स्वामी श्री भारती कृष्ण देवतीर्थ जी महाराज और 144वें शंकराचार्य स्वामी श्री निरंजन देवतीर्थ जी महाराज रहे। निरंजन देवतीर्थ के परम कृपापात्र शिष्य स्वामी श्री अधोक्षजानंद देवतीर्थ जी गोवर्धन पीठ के 145वें व वर्तमान शंकराचार्य हैं।

शंकराचार्य अधोक्षजानंद ने अपने संबोधन के दौरान देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में धार्मिक अनुष्ठानों को और बढ़ावा देने की वकालत की। उन्होंने कहा कि सीमावर्ती क्षेत्रों में वरिष्ठ संतों और महात्माओं के न पहुंचने से वहां धर्मान्तरण को बढ़ावा मिल रहा है, जिससे वहां के सनातन धर्मावलम्बियों में निराशा का भाव पनप रहा है। जगद्गुरु ने केंद्र और राज्य सरकारों से भी सीमावर्ती क्षेत्रों में विकास कार्यों को बढ़ावा देने को कहा है। उनका कहना है कि वहां विकास के कार्य हुये हैं और हो भी रहे हैं, लेकिन समयानुसार उसे और गति देने की आवश्यकता है।

गौरतलब है कि शंकराचार्य अधोक्षजानंद देव तीर्थ देश के सीमावर्ती क्षेत्रों में नियमित जाते रहते हैं और वहां व्यापक स्तर पर यज्ञादि अनुष्ठान कराते रहते हैं। माघ मेला के दौरान भी वह लगभग दस दिन के प्रवास पर पूर्वोत्तर भारत में थे और अरुणाचल व असम के सीमावर्ती क्षेत्रों में जाकर वहां के शिवालयों तथा अन्य देवालयों में विविध धार्मिक अनुष्ठान आयोजित किये थे।

29वें पीठारोहण के अवसर पर माघ मेला स्थित शंकराचार्य के शिविर में दो दिन का एक विशेष कार्यक्रम आयोजित हुआ, जिसके तहत यज्ञ और अन्य वैदिक अनुष्ठान सम्पन्न हुए। कार्यक्रम में उपस्थित संतों और दंडी संन्यासियों ने उनका फूल-माला, पुष्पगुच्छ और अंगवस्त्र से भव्य स्वागत किया। इस अवसर पर जगद्गुरु शंकराचार्य ने भी कार्यक्रम में उपस्थित संत-महात्माओं एवं श्रद्धालुओं को कंबल वितरित सभी को अपना शुभाशीष दिया।

इस अवसर पर अखिल भारतीय संत संघर्ष समिति के अध्यक्ष ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी ने कहा कि दो फरवरी 1995 को तत्कालीन अखाड़ा परिषद, षडदर्शन साधु समाज व विद्वत परिषद की उपस्थिति में स्वामी अधोक्षजानंद देव तीर्थ का पुरी पीठाधीश्वर जगद्गुरु शंकराचार्य के पद पर वैदिक विधि विधान से अभिषेक हुआ था। ब्रह्मस्वरुप ब्रह्मचारी ने कहा कि जगद््गुरु देव तीर्थ के पीठारोहण दिवस पर सभी संत-महात्मा हर्षित हैं और इस अवसर को हम सब उल्लासपूर्वक मना रहे हैं।

समारोह में आर्यावर्त विद्वतपरिषद के अध्यक्ष डा. रामजी मिश्र, जगद्गुरु रामानुजाचार्या स्वामी लक्ष्मणाचार्य, परमहंस स्वामी राजाराम दास दिगंबर, मानस केसरी छैलबिहारी दास, निर्मोही अखाड़ा के महंत राकेश दास, अनंत विज्ञान मठ वाराणसी के महंत स्वामी इन्द्रदेवाश्रम, दण्डीस्वामियों के कोतवाल स्वामी रामाश्रम, महामंडलेश्वर झंडा बाबा, ब्रम्हर्षि पीठाधीश्वर स्वामी ताणकेशरण सहित अनेक धार्मिक, सामाजिक एवं सांस्कृतिक संस्थाओं के प्रमुख एवं प्रशासनिक अधिकारी मौजूद रहे।