लखनऊ, 19 दिसम्बर। उत्तर प्रदेश में साल 2022 में हुए विधानसभा चुनाव में बहुजन समाज पार्टी (बसपा) को करारी हार मिली है। जानकारों का मानना है कि सन 1993 के बाद इस विधानसभा चुनाव में पार्टी को सबसे कम वोट मिले हैं। यह घटकर सिर्फ 13 प्रतिशत रह गए, जिसकी वजह से अब पार्टी पर राष्ट्रीय दल के दर्जे को लेकर भी खतरा मंडराने लगा है।
राजनीतिक के जानकारों का मानना है कि प्रदेश में 22 प्रतिशत दलित हैं, लेकिन बसपा को 13 प्रतिशत वोट मिले हैं, जिससे यह साफ हो गया है कि बसपा पार्टी के अपने बेस वोटर भी उससे दूर हो गये हैं, जिसके चलते सिर्फ एक ही विधायक बना है।
इतना ही नहीं दिल्ली एमसीडी चुनाव में एक फीसदी से कम वोट मिले हैं। बसपा का ग्राफ 2012 उप्र विधानसभा चुनाव से गिर रहा है। 2017 में बसपा 22.24 प्रतिशत वोटों के साथ सिर्फ 19 सीटों पर सिमट गई थी। 2019 लोकसभा चुनाव में वोट प्रतिशत में इजाफा तो नहीं हुआ,लेकिन सपा के साथ गठबंधन का फायदा मिला और 10 लोकसभा सीटों पर जीत हासिल की। ऐसे में बसपा की आगे की राजनीतिक राह काफी मुश्किल है और राष्ट्रीय पार्टी का दर्जा नहीं बचा पाएगी।
राजनितिक विशेषज्ञ का कहना है कि चुनाव चिह्न (आरक्षण और आवंटन आदेश, 1968) में कहा गया है कि एक राजनीतिक दल को एक राष्ट्रीय दल के रूप में मान्यता दी जा सकती है अगर वह कम से कम तीन अलग-अलग राज्यों से लोकसभा में दो प्रतिशत सीटें जीतता है। लोकसभा या विधानसभा चुनावों में कम से कम चार या अधिक राज्यों में हुए मतदान का कम से कम छह फीसदी वोट हासिल करता है। इसके अलावा यह कम से कम चार लोकसभा सीटों पर जीत हासिल करता है। पार्टी को चार प्रदेशों में राज्य पार्टी के रूप में मान्यता मिलती है। चुनाव आयोग ने आखिरी बार 2016 में नियमों में संशोधन किया था, ताकि पांच के बजाय हर 10 साल में राष्ट्रीय और राज्य पार्टी की स्थिति की समीक्षा की जा सके।
नाम न छपने की शर्त पर बसपा के जोनल कोआर्डिनेटर ने बताया कि पार्टी ने दलित-पिछड़े और अल्पसंख्यकों को अपने हक और इनकी ही बदौलत फिर से चुनावी मैदान में उतरने की तैयारी शुरू कर दी है। बसपा प्रमुख के भतीजे और राष्ट्रीय समन्वयक आकाश आनंद पार्टी को नया रूप देने की कोशिश में जुटे हैं। उनकी अगुआई में ही पार्टी दलित और पिछड़े वर्ग के युवाओं को जोड़ने का काम कर रही है। तमाम दलित संगठनों को भी पार्टी से जोड़ा जाएगा।