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लोकप्रिय राजनेता और कानून के अच्छे ज्ञाता थे पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी

प्रयागराज, 08 जनवरी। वरिष्ठ भाजपा नेता और पश्चिम बंगाल के पूर्व राज्यपाल पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी लोकप्रिय राजनेता के साथ कानून के भी अच्छे ज्ञाता थे। जहां राजनेता के रूप में उनके घर का दरवाजा आम जनता से लेकर हर दल के लोगों के लिए खुला रहता था वहीं वरिष्ठ अधिवक्ता के नाते तमाम वकील उनसे समय-समय पर कानून के दांव-पेंच सीखा करते थे।
पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी के पूर्वज देवरिया के रहने वाले थे लेकिन उनका जन्म प्रयागराज में 10 नवंबर 1934 को हुआ था। उनकी पूरी शिक्षा-दीक्षा भी प्रयागराज में ही हुई। इलाहाबाद उच्च न्यायालय में वकालत करते हुए देश के अच्छे विधिवेक्ता के रूप में उनकी पहचान बनी।
उनका राजनीतिक जीवन भी काफी लंबा रहा। पहले जनसंघ फिर भारतीय जनता पार्टी (भाजपा) के कार्यकर्ता के रूप में वह छह बार विधायक चुने गये। तीन बार उत्तर प्रदेश विधानसभा के अध्यक्ष रहे। भाजपा के प्रदेश अध्यक्ष भी वह रहे। छात्र जीवन में ही वह राष्ट्रीय स्वयंसेवक संघ के स्वयंसेवक बन गये थे। वर्ष 1952 में जब जनसंघ की स्थापना हुई तो पंडित केसरीनाथ इस दल के साथ जुड़ गये और जनसंघ की ओर से चलाए गये कश्मीर आंदोलन में भाग लिए। इसके कारण उन्हें जेल भी जाना पड़ा था।
आपातकाल के बाद वर्ष 1977 में जब सभी विपक्षी दलों ने मिलकर जनता पार्टी बनाई तो इस दल से प्रयागराज जिले के तत्कालीन झूंसी विधानसभा सीट से पहली बार वह विधायक चुने गए और प्रदेश सरकार में मंत्री बने। इसके बाद भाजपा के टिकट पर वर्ष 1989, 1991, 1993, 1996 तथा 2002 में वह शहर दक्षिणी विधानसभा क्षेत्र से विधायक चुने गये। वर्ष 1991 से 1993 तक, 1997 से 2002 तक और वर्ष 2002 से 2004 तक वह उप्र विधानसभा के तीन बार अध्यक्ष भी बने। वर्ष 2014 में जब केंद्र में नरेन्द्र मोदी की सरकार बनी तो उन्हें पश्चिम बंगाल का राज्यपाल बनाया गया। कुछ समय के लिए उन्हें बिहार, मेघालय, मिजोरम और त्रिपुरा के राज्यपाल का भी अतिरिक्त प्रभार सौंपा गया था।
हर दल में था सम्मान
पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी एक ऐसे राजनेता थे, जिन्हें हर राजनीतिक दल के लोग सम्मान देते थे। समाजवादी पार्टी के संस्थापक मुलायम सिंह यादव और बहुजन समाज पार्टी की मुखिया मायावती भी विपरीत विचारधारा के बावजूद उन्हें पूरा सम्मान देते थे। मुलायम सिंह यादव तो उन्हें अपना परम मित्र बताते थे।
जन सामान्य के लिए तो पंडित केसरीनाथ का दरवाजा सदैव खुला रहता था। एक सामान्य व्यक्ति भी बेहिचक उनके पास पहुंचता और उनसे अपनी पूरी परेशानी व्यक्त करता था तो वह उसकी समस्या का निदान हर स्तर से करते थे। यही कारण था कि अंतिम समय तक वह प्रयागराज के बड़े ही लोकप्रिय जननेता रहे। पश्चिम बंगाल के राज्यपाल रहते हुए भी लगभग हर सप्ताह वह प्रयागराज आया करते थे और लोगों के अनुरोध पर छोटे-छोटे कार्यक्रमों में भी जाने से परहेज नहीं करते थे।
पत्रकारों और अधिवक्ताओं के भी प्रिय थे पंडित जी
पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी पत्रकारों के भी बड़े प्रिय थे। वर्ष 2001 में प्रयागराज कुम्भ मेले में पत्रकारों और मेला पुलिस के बीच जब बड़ा आंदोलन हुआ तो तत्कालीन मुख्यमंत्री राजनाथ सिंह से लगातार वार्ता कर उन्होंने ही मामले को सुलझाया था।
वकालत में वह बहुत रुचि लेते थे और देश के जाने माने विधिवेत्ता और संविधान के ज्ञाता थे। राजनीतिक दायित्वों से जब थोड़ी भी फुरसत मिलती, उच्च न्यायालय में वकालत करने पहुंच जाते थे। राज्यपाल पद से अवकाश के बाद भी उन्होंने वकालत में दिलचस्पी दिखाई। हालांकि उम्र ज्यादा हो जाने की वजह से वह फाइलें तो ज्यादा नहीं पढ़ पाते थे लेकिन अगर कोई उनसे कानूनी राय मशवरा लेता था तो वह उसे उचित सलाह जरूर देते थे। कानूनी दांव पेंच जानने के लिए तमाम अधिवक्ताओं की भीड़ अक्सर उनके पास लगी रहती थी। इलाहाबाद उच्च न्यायालय बार एसोसिएशन के दो बार वह अध्यक्ष भी रहे। कानून के अच्छे ज्ञाता होने के नाते एक बार उनका नाम इलाहाबाद उच्च न्यायालय में न्यायाधीश बनने के लिए आया तो उन्होंने इस प्रस्ताव को अस्वीकार कर दिया था।
कवि हृदय थे पंडित केसरीनाथ
राजनेता और विधिवेता के अलावा पंडित केसरीनाथ त्रिपाठी एक अच्छे कवि भी थे। हिन्दी साहित्य से उनका बड़ा लगाव था। उन्होंने कई कविताएं लिखी हैं, जो बाद में प्रकाशित भी हुईं। वर्ष 1999 में लंदन में आयोजित हुए छठें विश्व हिंदी सम्मेलन में उन्होंने भारत का प्रतिनिधित्व किया था। सन् 2003 में सूरीनाम में आयोजित विश्व हिंदी सम्मेलन में भी भाग लिया था। हिन्दी साहित्य के प्रति उनकी सेवा को देखते हुए उन्हें साहित्य वाचस्पति सम्मान, भारत गौरव सम्मान, विश्व भारती सम्मान जैसे तमाम सम्मानों से अलंकृत भी किया गया था।