ताशकंद, 29 दिसंबर। जांबिया के बाद अब उज्बेकिस्तान में सिरप पीने से 18 बच्चों के मौत का मामला सामने आया है। उज्बेकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने दावा किया है कि यह सिरप एक भारतीय दवा कंपनी का है, जिससे 18 बच्चों की मौत हो गई। इस आरोप के बाद सिरप आपूर्ति करने वाली भारतीय दवा कंपनी संदेह के घेरे में आ गई है।
उज्बेकिस्तान सरकार ने मैरियन बायोटेक प्राइवेट लिमिटेड का जिक्र किया है, जो व्यापार के लिए वर्ष 2012 में उज्बेकिस्तान में रजिस्टर्ड हुई। उज्बेकिस्तान के स्वास्थ्य मंत्रालय ने एक बयान में कहा कि मरने वाले बच्चों ने भारत के नोएडा की मैरियन बायोटेक की निर्मित डॉक-1 मैक्स सिरप का सेवन किया था। बयान में कहा गया कि जांच में पाया गया कि मृत बच्चों ने अस्पताल में भर्ती होने से पहले इस दवा का 2-7 दिन तक दिन में 3-4 बार बार सेवन किया।
इसकी मात्रा 2.5-5 ML के बीच रही, जो बच्चों के लिए दवा की मानक खुराक से ज्यादा है। हालांकि बयान में सीधे तौर पर दवा में किसी तरह की गड़बड़ी का आरोप नहीं लगाया गया। बयान में कहा गया, ‘चूंकि दवा में मुख्य रूप से पेरासिटामोल है, जिसे माता-पिता ने गलत तरीके से इस्तेमाल किया या उन्होंने सीधे मेडिकल से इसे खरीद लिया या फिर ठंड विरोधी उपाय के रूप में इसे इस्तेमाल किया।
रिपोर्ट्स के मुताबिक शुरूआती जांच से पता चला है कि डॉक-1 मैक्स सिरप की इस सीरीज में एथिलीन ग्लाइकॉल है। मंत्रालय ने इस कैमिकल का जिक्र करते हुए कहा कि एथिलीन ग्लाइकॉल एक जहरीला पदार्थ है। इस पदार्थ के सेवन से उल्टी, बेहोशी, ऐंठन, हृदय की समस्या और किडनी फेलियर हो सकता है। कुल सात जिम्मेदार कर्मचारियों पर काम के प्रति लापरवाह और सावधानी न बरतने के लिए बर्खास्त कर दिया गया है। कई विशेषज्ञों पर अनुशासनात्मक कार्रवाई की गई है।
इस घटना के बाद डॉक-1 मैक्स दवा की टैबलेट और सिरप को सभी मेडिकल स्टोर से वापस ले लिया गया है। मंत्रालय ने माता-पिता को अपने बच्चों के स्वास्थ्य के प्रति सजग रहने को कहा है। इसके साथ ही दवा की दुकानों को निर्देश दिया है कि बिना डॉक्टर के पर्चे के दवाई न दें।
उल्लेखनीय है कि इससे पहले डब्ल्यूएचओ ने गांबिया में मेडेन फार्मा की बनी चार कफ सिरप के लिए अलर्ट जारी किया था। इन दवाइयों को गांबिया में 66 बच्चों की मौत से जोड़ा गया। 15 दिसंबर को भारत के औषधि महानियंत्रक (डीसीजीआई) ने डब्ल्यूएचओ को पत्र लिख कर कहा कि हड़बड़ी में मौतों को भारत की दवा कंपनियों से जोड़ दिया गया, जिससे दुनिया में भारतीय दवाइयों की गुणवत्ता पर सवाल उठे हैं।