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आखिर अवैध शराब पकड़ने में निष्क्रिय क्यों रहता आबकारी अमला?

फतेहपुर। जिले में पुलिस द्वारा आए दिन अवैध शराब के परिवहन पर अपना ध्यान केंद्रित किया जाता है। एक के बाद एक करके अवैध शराब पकड़ने में पुलिस को लगातार सफलता भी मिल रही है। पुलिस के जिम्मे अवैध शराब पकड़ने से इतर अन्य काम भी हैं, देखा जाये तो अवैध शराब के परिवहन पर अंकुश लगाने का काम आबकारी विभाग का है। सालों से यही बात सामने आ रही है कि आबकारी विभाग द्वारा अवैध शराब पकड़ने के नाम पर कच्ची शराब या लहन को पकड़ने की कार्यवाही को ही अंजाम दिया जाता रहा है। अंग्रेजी या देशी शराब के अवैध परिवहन या बिक्री पर अंकुश लगाने में आबकारी विभाग की दिलचस्पी ज्यादा दिखायी नहीं देती है। कई दशक पहले तक आबकारी विभाग द्वारा शराब के अवैध परिवहन को पकड़ा जाता था। इसमें ज्यादा मात्रा में अंग्रेजी शराब ही हुआ करती थी। इस दौर में आबकारी ठेकेदार द्वारा आबकारी विभाग के अधिकारियों के साथ मिलकर न केवल उन्हें वाहन मुहैया करवाया जाता था वरन अपने कारिंदों के जरिये उनकी दुकान के क्षेत्र में अवैध रूप से बिकने वाली शराब वाले स्थानों को भी चिन्हित कर शराब पकड़वायी जाती थी। इसी कड़ी में बीते दशक से जिले में शराब ठेकेदार एक हो गये लगते हैं, या यूँ कहा जाये कि शराब ठेकेदारों ने अपना सिंडीकेट बना लिया है तो अतिश्योक्ति नहीं होगी। इसके बाद से ही आबकारी विभाग द्वारा अवैध रूप से बिकने या परिवहन की जाने वाली शराब पर ध्यान देना बंद कर दिया गया है। जिले भर में गाँव-गाँव अवैध शराब बिक रही है। सरकार चाहे जिस भी दल की हो, हर सरकार के कार्यकाल में अवैध शराब पर अंकुश लगाने की बातें सिर्फ और सिर्फ प्रशासन की बैठकों तक ही सीमित रहती हैं। हाकिमों ने भी कभी आबकारी विभाग के आला अधिकारियों की जवाबदेही तय करते हुए उनसे यह नहीं पूछा है कि जब गाँव की महिलाएं या तो जनसुनवायी में या थाने में आवेदन देकर अवैध शराब की बिक्री की बातें करतीं हैं तब भी आबकारी विभाग क्यों निष्क्रिय बैठा दिखता है। जिलाधिकारी श्रुति से जन अपेक्षा है कि कम से कम वे ही इस संवेदनशील मामले में कार्यवाही करते हुए जिले के ग्रामीणांचलों में खुलेआम बिकने वाली शराब पर प्रतिबंध लगाये जाने के मार्ग प्रशस्त करें। ताकि युवा पीढ़ी को इस सामाजिक बुराई से बचाया जा सके।