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सत्संग से प्राप्त कर सकते जीवन का आनंद: गोपाल

फतेहपुर। शहर के श्यामनगर खंभापुर स्थित अनुरागेश्वर मंदिर में चल रही भागवत कथा में भगवाचार्य गोपाल द्विवेदी ने बताया कि जैसे जीवन जीने के लिए भोजन की आवश्यकता है वैसे ही सत्संग भी जरूरी है। तभी जीवन का आनंद प्राप्त कर सकते हैं।
कपिल देवहूति संवाद में बताया कि पांच ज्ञान इंद्रिया पांच कर्म इंद्रिया हमें अपनी ओर खींच रही हैं। इंद्रियों को वश में करने के लिए हमारे जीवन में संयम बहुत जरूरी है। वो संयम हमें सत्संग से ही प्राप्त होता है। सती चरित्र का वर्णन करते हुए बताया कि भगवान शंकर माता सती से रूठ गये सती का किसी ने सम्मान नहीं किया और जब माता सती ने यज्ञ मेें भगवान शंकर का अपमान देखा तब अपने शरीर को भस्म कर दिया। उस यज्ञ की पूर्णाहूति दक्ष के सिर से की गई। इससे हमें यही शिक्षा मिलती है कि कुभाव के द्वारा किए गए सतकर्म से कोई लाभ नहीं मिलता। धु्रव चरित्र के बारे में बताया कि उत्तानपाद की दो पत्नियां सुनीलति और सुरूचि जो नीति में चलें वो सुनीति जो रूचि के अनुसार चलें वो सुरूचि। रूचि का फल उत्तम है लेकिन अतिशीघ्र समाप्त होता है और नीति धर्म का फल धु्रव जैसा अटल फल प्राप्त होता है जो कभी समाप्त नहीं होता। इसलिए सदैव हमें धर्म नीति पर चलना चाहिए। कथा में परिक्षित के रूप में अनुराग नारायण उर्फ पुत्तन मिश्रा व उनकी पत्नी मिथिला मिश्रा रहीं। इस मौके पर अजय मिश्र, अरूण द्विवेदी, राजेश द्विवेदी, जय नारायण शर्मा, अनूप मिश्रा, रमेश मौर्या, अंबुज मिश्रा, सिद्धार्थ सिंह भी मौजूद रहे।