नई दिल्ली। कांग्रेस पार्टी की केरल इकाई ने गुरुवार को तिरुवनंतपुरम में नरेंद्र मोदी पर बनी बीबीसी की डॉक्यूमेंट्री लोगों को दिखाई।
ज्ञात हो कि केंद्र सरकार यह सुनिश्चित करने की पूरी कोशिश कर रही है कि भारत में डॉक्यूमेंट्री न दिखाई जाए, जिसके तहत इसे शेयर करने वाले सोशल मीडिया लिंक को ब्लॉक किया जा रहा है और विश्वविद्यालयों में इसको दिखाए जाने (स्क्रीनिंग) पर बाधा डाली जा रही है।
रिपोर्ट के मुताबिक, केरल में पहली बार इस डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग नहीं हुई है, इससे पहले वामपंथी छात्र संगठनों ने भी वहां डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की है। भारतीय कम्युनिस्ट पार्टी (मार्क्सवादी) द्वारा शासित राज्य सरकार, ने ऑनलाइन मंचों से डॉक्यूमेंट्री को हटाने के मोदी सरकार के प्रयासों के खिलाफ आगे आई है।
दो भागों की डॉक्यूमेंट्री का पहला एपिसोड 2002 के गुजरात दंगों की बात करता है, और मोदी व राज्य की भाजपा सरकार को हिंसा के लिए सीधे तौर पर जिम्मेदार ठहराता है। दूसरा एपिसोड, केंद्र में मोदी के सत्ता में आने के बाद- विशेष तौर पर 2019 में उनके दोबारा सत्ता में आने के बाद- मुसलमानों के खिलाफ हिंसा और उनकी सरकार द्वारा लाए गए भेदभावपूर्ण कानूनों की बात करता है।
सीपीआई (एम) की छात्र इकाई स्टूडेंट फेडरेशन ऑफ इंडिया (एसएफआई) ने भी गुरुवार की शाम कोलकाता के जादवपुर विश्वविद्यालय में डॉक्यूमेंट्री दिखाई। तृणमूल कांग्रेस के शासन वाली पुलिस ने स्क्रीनिंग में बाधा डालने का कोई प्रयास नहीं किया।
एसएफआई ने गुरुवार को हैदराबाद विश्वविद्यालय में भी डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की. संगठन के अनुसार, हरियाणा केंद्रीय विश्वविद्यालय में भी डॉक्यूमेंट्री का प्रदर्शन किया गया।
पिछले कुछ दिनों में कई छात्र संगठनों ने भारत में- दिल्ली, हैदराबाद, कोलकाता और चंडीगढ़ में- डॉक्यूमेंट्री की स्क्रीनिंग की है, जबकि विश्वविद्यालय प्रशासन ने कुछ मामलों में इसे रोकने के हर प्रयास किए हैं।
मंगलवार को दिल्ली में जवाहरलाल नेहरू विश्वविद्यालय में प्रशासन ने कथित तौर पर स्क्रीनिंग रोकने के लिए बिजली और इंटरनेट दोनों ही काट दिए, और दक्षिणपंथी छात्र संगठन ने कथित तौर पर उन लोगों पर पत्थर फेंके जो डॉक्यूमेंट्री देखने के लिए जुटे थे। हालांकि, छात्रों ने फिर भी डॉक्यूमेंट्री अपने लैपटॉप और मोबाइल फोन में देखी।
बुधवार को जामिया मिलिया इस्लामिया में पुलिस ने स्क्रीनिंग से पहले छात्र कार्यकर्ताओं को हिरासत में ले लिया और दंगा पुलिस को कैंपस में भेज दिया गया।
मालूम हो कि बीबीसी की ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ डॉक्यूमेंट्री में बताया गया है कि ब्रिटेन सरकार द्वारा करवाई गई गुजरात दंगों की जांच (जो अब तक अप्रकाशित रही है) में नरेंद्र मोदी को सीधे तौर पर हिंसा के लिए जिम्मेदार पाया गया था।
साथ ही इसमें प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी और देश के मुसलमानों के बीच तनाव की भी बात कही गई है. यह 2002 के फरवरी और मार्च महीनों में गुजरात में बड़े पैमाने पर सांप्रदायिक हिंसा में उनकी भूमिका के संबंध में दावों की पड़ताल भी करती है, जिसमें एक हजार से अधिक लोगों की जान चली गई थी।
डॉक्यूमेंट्री ब्रिटेन सरकार की एक अब तक अनदेखी जांच रिपोर्ट का हवाला देती है, जिसमें कहा गया है कि ‘नरेंद्र मोदी सीधे तौर पर जिम्मेदार हैं’. यह घटनाओं की शृंखला का ‘हिंसा के व्यवस्थित अभियान’ के रूप में उल्लेख करती है, जिसमें ‘नस्लीय सफाई (एथनिक क्लेंजिंग) के सभी संकेत’ हैं.
ब्रिटेन के तत्कालीन विदेश सचिव जैक स्ट्रॉ इसमें कहते नजर आते हैं कि ब्रिटिश टीम ने ‘बहुत गहन रिपोर्ट तैयार की है। सरकार ने बीते 20 जनवरी को सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म ट्विटर और यूट्यूब को ‘इंडिया: द मोदी क्वेश्चन’ नामक डॉक्यूमेंट्री के लिंक ब्लॉक करने का निर्देश दिया था।
इससे पहले विदेश मंत्रालय ने डॉक्यूमेंट्री को ‘दुष्प्रचार का हिस्सा’ बताते हुए खारिज किया है और कहा है कि इसमें निष्पक्षता का अभाव है तथा यह एक औपनिवेशिक मानसिकता को दर्शाता है। बीते 20 जनवरी को विदेश मंत्रालय के प्रवक्ता अरिंदम बागची ने बीबीसी की इस डॉक्यूमेंट्री पर संवाददाताओं के सवालों का जवाब देते हुए कहा था कि यह एक ‘गलत आख्यान’ को आगे बढ़ाने के लिए दुष्प्रचार का एक हिस्सा है।
बहरहाल, बीबीसी अपनी डॉक्यूमेंट्री के साथ खड़ा हुआ है और उसका कहना है कि यह काफी शोध करने के बाद बनाई गई है, जिसमें महत्वपूर्ण मुद्दों को निष्पक्षता से उजागर करने की कोशिश की गई है। चैनल ने यह भी कहा कि उसने भारत सरकार से इस पर जवाब मांगा था, लेकिन सरकार ने कोई जवाब नहीं दिया।