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केंद्र को नोटबंदी का फ़ैसला क़ानून के तहत लेना चाहिए था: न्यायमूर्ति नागरत्ना

नई दिल्ली। उच्चतम न्यायालय की न्यायाधीश बी. वी. नागरत्ना ने कहा कि 500 और 1000 रुपये की श्रृंखला वाले नोटों को बंद करने का फ़ैसला गजट अधिसूचना के बजाए क़ानून के जरिए लिया जाना चाहिए था क्योंकि इतने महत्वपूर्ण मामले से संसद को अलग नहीं रखा जा सकता।

उच्चतम न्यायालय की संविधान पीठ ने केंद्र सरकार के 2016 में 500 और 1000 रुपये की श्रृंखला वाले नोटों को बंद करने के फ़ैसले को सोमवार को 4:1 के बहुमत के साथ सही ठहराया, हालांकि न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना ने सरकार के फ़ैसले पर कई सवाल उठाए हैं।

न्यायमूर्ति एस. ए. नज़ीर की अध्यक्षता वाली इस पीठ में न्यायमूर्ति बी. वी. नागरत्ना के अलावा न्यायमूर्ति बी. आर. गवई , न्यायमूर्ति ए. एस. बोपन्ना और न्यायमूर्ति वी. रामासुब्रमण्यन भी शामिल हैं।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि केंद्र के कहने पर नोटों की एक पूरी श्रृंखला को बंद करना एक गंभीर मुद्दा है जिसका अर्थव्यवस्था और देश के नागरिकों पर व्यापक प्रभाव पड़ा है।

न्यायमूर्ति नागरत्ना ने कहा कि भारतीय रिज़़र्व बैंक (आरबीआई) ने इस मामले में स्वतंत्र रूप से विचार नहीं किया, उससे सिर्फ़ राय मांगी गई जिसे केंद्रीय बैंक की सिफारिश नहीं कहा जा सकता। उन्होंने कहा कि पूरी क़वायद 24 घंटे में कर डाली।

उन्होंने कहा, ‘‘ मेरा मानना है कि केंद्र सरकार के अधिकार व्यापक हैं, लेकिन इनका इस्तेमाल क़ानून के जरिए होना चाहिए, अधिसूचना जारी करके नहीं। यह ज़रूरी है कि संसद जो देश की जनता का प्रतिनिधित्व करती है वहां इस मामले पर चर्चा हो और वही इसकी मंज़ूरी दे।’’