15 मार्च 2016 को प्रधानमंत्री, वित्त मंत्री और आरबीआई गवर्नर को लिखे एक पत्र में कर्नाटक की भ्रष्टाचार विरोधी समिति ने काले धन की समस्या से निपटने के लिए 500 और 1,000 रुपये के बैंक नोट पर प्रतिबंध लगाने का सुझाव दिया था.
जिसके जवाब में आरबीआई ने कहा था, ‘500 और 1,000 रुपये मूल्यवर्ग के नोट प्रचलन में मौजूद नोटों के मूल्य का 85 फीसदी हैं और जनता की नकदी संबंधी जरूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाते हैं. इसे देखते हुए वर्तमान में 500 और 1,000 रुपये के उच्च मूल्य-वर्ग के बैंक नोटों को वापस लेना व्यवहार्य नहीं होगा.’ उक्त पत्र 12 जनवरी 2016 को बेंगलुरु की एंटी-लैंड ग्रैबिंग एक्शन कमेटी द्वारा लिखा गया था.
प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को लिखे गए इस पत्र में समिति ने ‘भारत में काले धन की समस्या से निपटने के लिए किए जाने वाले उपायों’ के बारे में लिखा था. इसने तत्कालीन वित्तमंत्री अरुण जेटली और आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन को भी पत्र की एक प्रति भेजी थी.
पत्र में पूर्व विधायक व समिति के संयोजक एके रामास्वामी ने लिखा था कि कैसे ‘काला धन आर्थिक और सामाजिक समस्या दोनों है.’ रामास्वामी ने 2006 में कर्नाटक सरकार द्वारा बेंगलुरु में सरकारी भूमि के अतिक्रमण की जांच और रिपोर्ट करने के लिए गठित संयुक्त विधायी समिति की अध्यक्षता भी की थी. उन्होंने पत्र में इस बात पर भी जोर दिया था कि रियल एस्टेट और काले धन के बीच गहरा संबंध है.
उन्होंने कहा था कि काले धन के प्रचलन पर अंकुश लगाने और इसे आगे बढ़ने से रोकने की जरूरत है. उन्होंने इस दिशा में 1,000 और 500 रुपये के नोट बंद करने का सुझाव दिया था. उन्होंने कहा था, ‘तिजोरियों में रखा काला धन एक ही झटके में बेकार हो जाएगा.’
प्रधानमंत्री, उनके कार्यालय और वित्त मंत्री ने पत्र पर कोई जवाब नहीं दिया था. हालांकि, आरबीआई ने 15 मार्च 2016 के एक पत्र में रामास्वामी को जवाब दिया.
महाप्रबंधक ई. बागे द्वारा भेजे गए पत्र में कहा गया था, ‘500 और 1,000 रुपये मूल्य-वर्ग के नोट प्रचलन में मौजूद नोटों के मूल्य का 85 फीसदी हैं और जनता की नकदी संबंधी जरूरतों को पूरा करने में अहम भूमिका निभाते हैं. इसे देखते हुए, वर्तमान में 500 और 1,000 रुपये के उच्च मूल्य-वर्ग के बैंक नोटों को वापस लेना व्यवहार्य नहीं होगा.’
इसमें आगे कहा गया, ‘इसके अतिरिक्त जैसा कि आरबीआई अधिनियम-1934 की धारा 24 कहती है, बैंक नोटों के मूल्य-वर्ग/उन्हें जारी न करने/बंद करने से संबंधी सभी फैसले केंद्र सरकार की मंजूरी से लिए जाते हैं.’ समिति और प्रधानमंत्री/वित्त मंत्री/आरबीआई के बीच संवाद का विवरण रामास्वामी द्वारा तब प्रकाश में लाया गया था, जब उन्होंने एक आरटीआई दायर किए जाने के बाद याचिकाकर्ता के साथ इसे साझा किया था.
आरटीआई कार्यकर्ता वेंकटेश नायक ने कॉमनवेल्थ ह्यूमन राइट्स इनिशिएटिव के लिए काम करते हुए नोटबंदी की प्रक्रिया और इसके परिणामों को बड़े पैमाने पर आरटीआई के माध्यम से आगे बढ़ाया था. उन्होंने कहा कि आरबीआई के निदेशकों ने सरकार के रुख के विपरीत राय दी थी कि अधिकांश काला धन नकदी के रूप में नहीं, बल्कि सोने या अचल संपत्ति जैसी संपत्ति के रूप में रखा जाता है.
नायक द्वारा लगाई गई आरटीआई के जवाब में आरबीआई ने कहा था कि उसे 1,000 रुपये और 500 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले की व्यवहार्यता, लागत-लाभ विश्लेषण या प्रभाव का विश्लेषण करने के लिए किए गए किसी भी अध्ययन की जानकारी नहीं है. वहीं, ज्ञात हो कि जह रघुराम राजन आरबीआई के गवर्नर हुआ करते थे, तब इस केंद्रीय बैंक ने केंद्र सरकार के नोटबंदी के कदम को खारिज कर दिया था. हालांकि, राजन द्वारा 4 सितंबर 2016 को अपने पद से इस्तीफा दिए जाने के बाद सरकार ने नोटबंदी की कार्रवाई को आगे बढ़ाया.
हालांकि, पिछले महीने केंद्र सरकार ने सुप्रीम कोर्ट में एक हलफनामा दाखिल करते हुए कहा था कि नोट बंद करने का फैसला आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की विशेष सिफारिश पर लिया गया था. इसने आगे कहा था कि आरबीआई ने सिफारिश के कार्यान्वयन के लिए एक मसौदा योजना भी प्रस्तावित की थी.
सुप्रीम कोर्ट 58 याचिकाओं के एक बैच पर सुनवाई कर रहा था, जिन्होंने सरकार के नोटबंदी के कदम को चुनौती दी थी. हलफनामे में सरकार ने दावा किया था, ‘सिफारिश और मसौदा योजना पर केंद्र सरकार द्वारा विधिवत विचार किया गया था और उसके आधार पर अधिसूचना को भारत के राजपत्र में प्रकाशित किया गया था, जिसमें यह घोषणा की गई थी कि निर्दिष्ट बैंक नोट कानूनी निविदा नहीं रहेंगे.’
वहीं, द वायर ने वेंकटेश नायक के हवाले से अपनी एक रिपोर्ट में बताया था कि आरबीआई के केंद्रीय बोर्ड की बैठक के मिनटों के विवरण से पता चलता है कि बोर्ड को इस बारे में पता ही नहीं था. प्रधानमंत्री द्वारा नोटबंदी के फैसले की घोषणा करने से छह घंटे से भी कम समय पहले इस विषय पर डिप्टी गवर्नर की विज्ञप्ति को बोर्ड के समक्ष प्रस्तुत किया गया था.
इसने यह भी कहा था, ‘बोर्ड को आश्वासन दिया गया था कि यह मामला पिछले छह महीनों में केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच चर्चा में रहा है, जिसके दौरान इनमें से अधिकांश मुद्दों पर विचार किया गया है. घोषित उद्देश्यों के अलावा प्रस्तावित कदम वित्तीय समावेशन की प्रक्रिया को आगे बढ़ाने और भुगतान के इलेक्ट्रॉनिक तरीकों के उपयोग को प्रोत्साहित करने का एक बड़ा अवसर भी प्रस्तुत करता है, क्योंकि लोग नकदी के उपयोग पर बैंक एकाउंट और भुगतान के इलेक्ट्रॉनिक साधनों के लाभों को देखते हैं.’
इसलिए, बैठक के मिनटों में स्पष्ट रूप से कहा गया था कि बोर्ड को केवल ‘आश्वासन’ दिया गया था कि यह मामला केंद्र सरकार और आरबीआई के बीच चर्चा का विषय था. सरकार ने सर्वोच्च न्यायालय को यह भी बताया कि ‘निर्दिष्ट बैंक नोटों के कानूनी निविदा को वापस लेना अपने आप में एक प्रभावी उपाय था और नकली धन, आतंकवाद के वित्तपोषण, काले धन और कर चोरी (लेकिन केवल उन्हीं तक सीमित नहीं है) के खतरे से निपटने के लिए एक बड़ी रणनीति का भी एक हिस्सा था.
यह ध्यान रखना दिलचस्प है कि 12 जनवरी, 2016 को प्रधानमंत्री को भेजे गए एक पत्र में बेंगलुरु की भूमि हड़पने वाली कार्रवाई समिति द्वारा लगभग समान चिंताओं को उठाया गया था. समिति ने प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी को ‘भारत में काले धन की समस्या से निपटने के लिए किए जाने वाले उपायों’ के बारे में लिखा था. इसने इस पत्र की प्रतियां तत्कालीन वित्त मंत्री अरुण जेटली और आरबीआई गवर्नर रघुराम राजन को भी भेजी थीं.
पत्र में पूर्व विधायक व समिति के संयोजक एके रामास्वामी ने लिखा था कि कैसे ‘काला धन आर्थिक और सामाजिक समस्या दोनों’ है. उन्होंने कहा था कि भारत में प्रचलन में रहे काले धन के बारे में ‘गहरा देने वाली चुप्पी’ है. इससे पहले वेंकटेश नायक द्वारा दायर एक आरटीआई के जवाब में आरबीआई ने कहा था कि उसे 500 और 1,000 रुपये के नोटों को बंद करने के फैसले की व्यवहार्यता, लागत-लाभ विश्लेषण या प्रभाव का विश्लेषण करने के लिए किए गए किसी भी अध्ययन की जानकारी नहीं थी.
15 मार्च, 2019 को नायक ने आरबीआई के साथ एक आरटीआई आवेदन भी दायर किया था, जिसमें 500 और 1,000 रुपये के मूल्य-वर्ग के बैंक नोटों की कानूनी निविदा प्रकृति को समाप्त करने के भारत सरकार के निर्णय से पहले आरबीआई द्वारा किए गए या कमीशन किए गए या उपलब्ध कराए गए किसी भी व्यवहार्यता अध्ययन की फोटोकॉपी मांगी थी. इन सभी सवालों के जवाब में, आरबीआई के केंद्रीय लोक सूचना अधिकारी ने 17 जून, 2019 को उन्हें यह कहते हुए जवाब दिया था कि ‘आरबीआई के पास ऐसी कोई जानकारी उपलब्ध नहीं है.’