नई दिल्ली। उत्तर प्रदेश पुलिस एक बार फिर सवालों के घेरों में है। कानपुर में पुलिस हिरासत में एक व्यक्ति की मौत और पुलिसकर्मियों द्वारा एक व्यवसायिक के अपहरण ने पुलिस की पर सवाल खड़े कर दिये हैं।कानपुर में 15 दिनों के भीतर हुई इन दो घटनाओं ने सिर्फ़ पुलिस विभाग को असहज किया है बल्कि हिरासत में होने वाली मौतों पर एक बार फिर बहस शुरू हो गई है।देश के महत्वपूर्ण राज्य उत्तर प्रदेश में यह पुलिस हिरासत में पहली मौत नहीं है। अगर आंकड़ों पर नजर डालें तो उत्तर प्रदेश हिरासत में होने वाली मौतों में सबसे आगे नजर आता हैं।
हिरासत में मौत के आंकड़े
संसद में जुलाई 2022 में राष्ट्रीय मानवाधिकार आयोग की पेश की गई रिपोर्ट से पता चलता है कि देश में हर दिन 06 लोगों की मौत पुलिस हिरासत में हो रही है। इस मामले में पिछले दो साल से उत्तर प्रदेश नंबर एक पर है।डी डब्ल्यू में प्रकाशित एक ख़बर के अनुसार भारत में पिछले दो साल में हिरासत में होने वाली कुल मौतों की संख्या 4484 जिनमें सबसे ज्यादा मौतें उत्तर प्रदेश उसके बाद पश्चिम बंगाल और फिर मध्य प्रदेश का नंबर आता है।
नित्यानंद राय, केंद्रीय गृह राज्य मंत्री ने बताया कि अकेले उत्तर प्रदेश में 2020-21 में हिरासत में मौत के 451 मामले दर्ज किए गए। जबकि 2021-22 में हिरासत में कुल 501 मौतें हुईं। देश भर में 2020-21 में यह संख्या 1940 थी जबकि 2021-22 में हिरासत में हुई मौतों का आंकड़ा 2544 है।
लेकिन जब भी हिरासत में कोई मौत होती है तो कारणों को छिपाने का हर संभव प्रयास होता है। बताया जाता कि मौत का कारण प्राकृतिक कारणों से हुई है।जबकि यह सब को मालूम है कि हिरासत में लेने के बाद अभियुक्त के साथ पुलिस क्या रवैया होता है। लाठी से लेकर बिजली के करंट तक का इस्तेमाल कोई नहीं और छुपी बात नही है।
थर्ड डिग्री टॉर्चर के बाद मौत
कानपुर देहात के थाना शिवली के अंतर्गत 6 दिसंबर को व्यापारी चंद्रभान के साथ हुई लूट की घटना के खुलासे में जुटी पुलिस टीम और एसओजी टीम ने संदेह के आधार पर 5 लोगों को हिरासत में लिया था। जिसमें लूट का शिकार हुए चंद्रभान का भतीजा बलवंत सिंह भी शामिल था। वही हिरासत में पूछताछ के दौरान बलवंत पुलिस की कथित बर्बरता का शिकार हो गया और उसकी मौत हो गई ।कानपुर देहात में हुई घटना में जब अभियुक्त को कथित तौर पर थर्ड डिग्री टॉर्चर किया गया और मार की वजह से उसकी की तबीयत बिगड़ी तो पुलिस उसको अस्पताल लेकर गई।
लेकिन जब वहां अभियुक्त की मौत गई तो आरोप है पुलिस उसको वही छोड़ कर चली गई। जब मौत की ख़बर फैली तो अपने टॉर्चर पर पर्दा डालने के लिए पुलिस ने मौत का कारण “हार्ट अटैक” बता दिया। जिस कथित हत्या को उत्तर प्रदेश कि कानपुर पुलिस हार्ट अटैक से हुई मौत साबित करने में लगी थी, उसमें शव की पोस्टमार्टम के बाद कई खुलासे हुए।पोस्टमार्टम ने पुलिस की बर्बरता को कहानी साफ़सुना दी। पोस्टमार्टम रिपोर्ट में निकला कि मृतक के शरीर पर क़रीब 31 चोटों के निशान थे।
इसके बाद आनन-फानन में स्थानीय लोगो के प्रदर्शन और गुस्से को शांत करने के लिए पुलिस अधीक्षक सुनीति के निर्देश पर आरोपी पुलिसकर्मी सस्पेंड कर दिए गए। वही पुलिस अधीक्षक ने जांच के लिए एसआईटी भी गठित कर दी। जबकि दूसरी तरफ मृतक के परिजन लगातार सीबीआई जांच की मांग कर रहे थे ।
विपक्ष के सवाल
मामले ने सियासी रंग भी ले लिया है। विपक्ष ने दोनों घटनाओं को लेकर सरकार को घेर रही है। पुलिस हिरासत में कथित तौर पर बलवंत की हुई हत्या का मामला सामने आने के बाद के समाजवादी पार्टी अध्यक्ष अखिलेश यादव मृतक बलवंत के गांव लालपुर सरैया पहुंचे। पूर्व मुख्यमंत्री अखिलेश यादव ने पुलिस की कार्यशैली पर गंभीर आरोप लगाते हुए कहा, “पुलिस ने बलवंत सिंह की जान ले ली। इस घटना की पूरी जिम्मेदारी पुलिस की है।”सपा प्रमुख ने कहा कोई सोच सकता है इस सभ्य समाज में जहां बलवंत सिंह को 3 घंटे से ज्यादा मारा गया हो।” उन्होंने ने कहा कि योगी आदित्यनाथ सरकार, राज्य में “पुलिस राज” स्थापित करना चाहती है।”
पुलिस का “अपराधीकरण”
कानपुर की पूर्व सांसद सुभाषनी अली कहती हैं कि प्रदेश में पुलिस का “अपराधीकरण” हो रहा है। आम आदमी का भरोसा पुलिस पर से उठ रहा है। सुभाषनी अली के कहा की उत्तर में हिरासत में मौत का आँकड़ा बढ़ता जा रहा है। पहले भी में प्रदेश में वंचित वर्ग के लोगों पुलिस बर्बरता के शिकार हुए हैं, लेकिन उसमें बहुत से मामलों को दबा दिया गया। लेकिन इस बार एक मध्य वर्गी परिवार का मामला था तो पुलिस की कार्यशैली पर सवाल उठ रहे हैं।
“व्यवहार परिवर्तन” की आवश्यकता
इस घटना से एक बार फ़िर ख़ाकी पर एक और दाग लाग गया। प्रसिद्ध अधिवक्ता मोहम्मद हैदर कहते हैं कि अदालतें समय-समय पर हिरासत में होने वाली मौतों पर सवाल उठाती रही हैं।अधिवक्ता मोहम्मद हैदर कहते हैं कि अदालत हिरासत में होने वाली मौत को सबसे “जघन्य अपराध” मानती हैं। वह कहते हैं कि इस तरह की घटनाओं पर अदालत की नाराज़गी के बावजूद कमी नहीं आ रही है।
वह मानते हैं कि “पुलिस मित्र” शब्द केवल प्रतीकात्मक रूप में लिखा जाता है, जब तक इस पर वास्तव में अमल नहीं होगा, हालत ऐसे ही रहेगें। मोहम्मद हैदर कहते हैं पुलिस में “व्यवहार परिवर्तन” की सख्त आवश्यकता है ताकि उसका इक़बाल भी बना रहे और छवि पर और दाग न लगे।
फ़िरौती मांगती पुलिस
इतना ही नहीं कानपुर में स्वयं पुलिस ही लोगो का अपहरण करा रही थी और उनसे फिरौती वसूली की जा रही थी। बताया जाता है की यह खेल लंबे समय से चल रहा था। कानपुर में कुछ पुलिसकर्मी ही स्पेशल टास्क फ़ोर्स (एसटीएफ) के नाम पर व्यापारियों का अपहरण करके वसूली का गैंग चला रहे थे।
इस गैंग में शामिल 04 लोग 23 दिसम्बर की रात एक कार से आए और कानपुर के गोविंद नगर की जेपी कॉलोनी में रहने वाले एक दुकानदार पंकज कपूर को उठा ले गए। इन लोगों ने स्वयं को एसटीएफ से बताया था। बाद में यह लोग दुकानदार सुनसान जगह ले गए, जहां उससे कहा कि तुम “नशीले पदार्थ” बेचते हो इस मामले में जेल भेज देंगे। जेल न भेजने के लिए व्यापारी से 20 हजार रुपये की फिरौती मांगी गई। फिरौती के लिए फ़ोन आने के बाद, अपहरण सूचना पंकज के परिवार ने स्थानीय पुलिस को दी ।
जब पुलिस ने इस इस गैंग को पकड़ने की कोशिश तो पूरा गैंग व्यापारी को छोड़कर मौके से फरार हो गया। लेकिन जब इस मामले का खुलासा हुआ तो पुलिस के आला अधिकारीयों के भी होश उठ गये। क्योंकि इस अपहरण करने वालों में पुलिसकर्मी भी शामिल थे।
पुलिस ने इस गैंग में शामिल सिपाही मुकेश को उसके साथी शालू के साथ गिरफ्तार कर लिया। मुकेश का दूसरा साथी अमित जो कि पुलिसकर्मी है, वो अपने एक साथी के साथ मौके से फरार हो गया। इस मामले से उत्तर प्रदेश में ख़ाकी को शर्मसार कर दिया। हालाँकि पुलिस कमिश्नर ने दोनों की बर्खास्त गी के आदेश दिए हैं।
लेकिन सवाल यह उठता है कि जिस पुलिस पर कानून लागू कराने की जिम्मेदारी है वह स्वयं अपराधी बनती जा रही है। आम जनता का विश्वास पुलिस पर कैसे बाकी रहेगा? अगर जनता के बीच पुलिस का इक़बाल नहीं रहा तो कानून व्यवस्था कैसे संभाली जायेगी?
क्या कहते हैं पूर्व पुलिस महानिदेशक
प्रदेश के पूर्व पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह कहते हैं कि चाहे हिरासत में मौत का मामला हो या पुलिस द्वारा अपहरण कर फिरौती मांगने की बात हो दोनों पुलिस की कार्यशैली पर पश्न खड़े करते हैं। पूर्व पुलिस महानिदेशक विक्रम सिंह कहते हैं “सूचना प्रौद्योगिकी” के इस इस युग में अपनी छवि को बचाने के लिए पुलिस को पूरी 100 प्रतिशत मानवता अपनाना होगी।वह आगे कहते हैं कि निर्दयता से नहीं बल्कि इस आधुनिक दौर में “कृत्रिम बुद्धिमत्ता” के सही इस्तेमाल से अपराधी से उसका जुर्म और उसका आपराधिक इतिहास मालूम किया जा सकता है।
पूर्व पुलिस महानिदेशक के अनुसार अगर थाने में पुलिस हिरासत में मौत के मामले में पूरा थाने का अमला सस्पेंड होना चाहिए है और इसकी मजिस्ट्रेटी जाँच होना चाहिए है। पुलिस पर लगे अपरहण के आरोप पर बात करते हुए विक्रम सिंह ने कहा कि यह विभाग में फैले भ्रष्टाचार को दर्शाता है। यह जिम्मेदारी आला अधिकारियों की है कि विभाग में हो रहे भ्रष्टाचार को ख़त्म करें।